मैं दिल्ली के कालका जी में किराए के मकान में रहता था। तब मैं बैचलर था। नीचे वाले फ्लोर पर मकान मालिक का परिवार रहता था और ऊपर के एक कमरे में मैं अकेले रहता था। मकान मालिक के परिवार में मकान मालिक, उनकी पत्नी और उनका एक तीन साल का बेटा रहता था।
मैं मालवीय नगर में नौकरी करता था और मेरी नाईट ड्यूटी होती थी। तब भारत में आउटसोर्सिंग का काम नया नया शुरू हुआ था। मैं एक अमेरिकन कंपनी के लिए कार्य करता था।
मेरी रात्रि के 10 बजे से सुबह 6 बजे की शिफ्ट रहती थी। मैं सुबह 7 बजे अपने कमरे पर वापस आ जाता था। वापस आने के बाद मैं हल्का नास्ता करके सो जाता था।
मकान मालिक फरीदाबाद में कही नौकरी करते थे। उनकी पत्नी की उम्र कोई 25 वर्ष के आस-पास रही होगी। मकान मालिक और उनकी पत्नी में अक्सर अनबन होती रहती थी।
उनका बेटा मेरे जागने के बाद अक्सर मेरे रूम में आ जाता था और मेरे ही पास रहता था। कभी-कभी भाभी जी भी मेरे कमरे में आ जातीं और कुछ देर बैठकर यहां-वहां की बातें करतीं।
धीरे-धीरे वह मुझसे बहुत खुल गई थीं। दिन भर उनके पति घर पर नही रहते थे। मेरा अपने कमरे में जाने का रास्ता नीचे उनके घर से होकर जाता था। मैं अक्सर देखता की भाभी जी दिन में मकान मालिक के जाने के बाद अपने पहनावे-ओढावे को लेकर बहुत हीं बेख्याल रहती थीं। उनके कपड़े हमेंशा अस्त-वयस्त रहते थें।
धीरे-धीरे भाभी जी मुझे अपने करीब करने की कोशिश करने लगीं। लेकिन मैं जान बूझ कर अनजान बना रहता था। एक बार वो मेरे कमरे में आ गईं और मेरे साथ लगभग जबरदस्ती करने लगीं
मैं उन्हें समझाता रहा लेकिन वो मानने को तैयार नही थीं। मजबूरी में मैंने उन्हें लगभग धक्का देते हुए यह कह कर घर से बाहर निकल गया कि मैं शाम में भैया से यह बात बताऊंगा।
यह बोलकर मैं पास में हीं अपनी दीदी के यहां चला गया और वही से शाम में ऑफिस चला गया।
दूसरे दिन जब मैं आफिस से अपने कमरे पर आया तो देखा कि मकान मालिक मेरी प्रतीक्षा कर रहे थें और वो बहुत नाराज दिख रहे थें। मैंने उनका अभिवादन किया और अपने कमरे में आ गया।
थोड़ी हीं देर में वह मेरे पास आयें और मुझे डांटने लगें। वह बोलें कि मैं तो तुम्हे एक अच्छा लड़का समझता था लेकिन तुम तो एक बहुत घटिया इंसान निकले। मेरे पीछे मेरी बीवी पर डोरे डालने लगे। मैंने उन्हें बहुत समझाने की कोशिश की लेकिन वह मेरी कोई भी बात मानने को तैयार नही थें। उन्होंने मुझे दो दिन के अंदर मकान खाली करने का आदेश दे दिया।
दूसरे दिन दोपहर में मैं जब अपने कमरे में अकेले था तो उनकी पत्नी फिर मेरे पास आईं और बोली कि अगर मैं उनकी बात मान लेता तो क्या हो जाता। मुझे बेकार में ही मकान खाली करना पड़ेगा। उन्होंने फिर से कहा कि मैं अगर उनकी बात मान लूं तो वह अपने पति को समझा देंगी और मुझे मकान नही खाली करना पड़ेगा।
मैंने उन्हें कोई जवाब नही दिया। दूसरे दिन मैंने चुपचाप वह कमरा खाली कर दिया। मुझे लगा कि वही बेहतर था वरना क्या पता मुझे वह औरत और किस चक्कर मे डाल देती।
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