प्राणायाम दो शब्दों के योग से बना है (प्राण आयाम) आयाम का अर्थ है। | विस्तार। प्राणायाम का शाब्दिक अर्थ है प्राण शक्ति का विस्तार एवं उत्प्रेणा देना। प्राण || शब्द के साथ वायु जब जुड़ता है तब प्राण वायु का अर्थ नासिका द्वारा श्वास खींचकर फेफड़ों को फैलाना और फेफड़ों में व्याप्त ऑक्सीजन को खून के माध्यम से समस्त शरीर में पहुँचाना। शरीर में प्राण तत्त्व को श्वसन (श्वास-प्रश्वास) क्रिया द्वारा नियंत्रण एवं विस्तार करने की तकनीकी विधि (Technical method) को प्राणायाम कहा जाता है। पंचभूता (क्षिती, जल, पावक, गगन, समीरा) शरीर को जीवित रखने में एवं शरीर के त्रिदोष (कफ, पित, वायु) में वायु एक प्रमुख तत्व है जो श्वास के रूप में हमारा प्राण है। प्राण एक वायवीय शक्ति (ऊर्जा) है जो समस्त ब्रह्माण्ड के सजीव-निर्जीव पदार्थों में समाहित है। नाक द्वारा ली गई वायु का प्राण शक्ति से गहरा सम्बंध है। प्राण हवा (ऑक्सीजन) से अधिक सूक्ष्म है एवं श्वसन प्रक्रिया द्वारा शरीर में व्याप्त 72 हजार नाड़ियों का परिमार्जन, शुद्धिकरण एवं संतुलन होता है। इस तरह भौतिक-मानसिक एवं सा यात्मिक उन्नति प्राप्त कर तन-निरोगी एवं मन- योगी और अहंकार ओंकार में बदल जाता है।
प्राण वायु का मूल मंत्र है- "चरैवेति-चरैवेति" लगातार दिन-रात अनवरत बिना रूके चलते रहना ही जीवन (LIFE- Light of Inner Force Emission/ Exhibition) है और इसका रूक जाना ही मृत्यु [Death De apperance of ([[otal health] है। लेंस रूपमि में Emission और Reel life में Exhibition ||देखा-देखी दिखावट दुनिया कर लो मुट्ठी में" भाग दौड़ की जिन्दगी को (Cinema dramatic) बनाती है और प्राणायाम Reel को सममि में बदल देती। है। शरीर और आत्मा (Soul - Source Of Universal Love) के बीच की कड़ी। | शणवायु सेतु के समान है। प्राणायाम सेतु को मजबूत करता है। प्राण की ऊर्जा से ही। Real Li Real e शब्द, रस, रूप, गंध, स्पर्श का स्पन्दन ज्ञानेन्द्रियों द्वारा मान (अनुभव) होता है। शरीर में । स्थित प्राण को पाँच उपविभागों में विभाजित किया गया है जिन्हें प्राण, अपान समार देवदत्, धनंजय, (रेतस) हैं जो शरीर की समस्त क्रियाओं का संचालन करने में एक उदान, व्यान् (ओजस) कहते हैं एवं पाँच लघु उपप्राण वायु जैसे नाम कुर्म दूसरे के पूरक एवं सहायक है। जैसे हमारे दोनो-नेत्र, कान, नासिका हाथ और पैर एक दूसरे के सहायक एवं साथी है।
प्राणायाम का मुख्य लक्ष्य है दस प्राणों की बीच साभ्य एवं संतुलन बनाए रखना (Hormonal harmony for mind Healthy body - Sentiments) शारीरिक, मानसिक एवं अध्यात्मिक विकास के साथ जीवन के परम लक्ष्य “परमानन्द शान्ति” प्राप्त कर अनेक से एक हो जाना (आत्मा से खात्मा का मिलन परमात्मा में) यानि नर का मिलन नारायण में । “योग भगावे रोग" अभियान में प्राणायाम का 80% भागीदारी है। प्राणायाम के सरल नियम, स्थान, विधि (तरीका) समय एवं संकल्प की जानकारी के बाद ही स्वाथ्य में पूर्ण लाभ एवं सिद्धि मिलती है। सात सूक्ष्म प्राणायामों में मुख्य पाँच कपालभाति, अनुलोम-विलोम, भ्रामरी एवं उदगीथ् प्राणायाम भस्त्रिका, हैं। जो सात साल के बच्चे से लेकर सत्तर-अस्सी साल के वृद्धों के लिए सरल, सहज एवं लाभकारी है। कहावत है - "लाख रोगों की एक दवाई - योगाभ्यास के साथ हँसना सीखों मेरे
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