10 right way to do yoga method and benefits | योगा करने का 10 सही तरीका जाने विधि और लाभ


मुद्रा


अष्टांग योग में आसनों का एक विकसित रूप है मुद्रा । आसन प्राणायाम से भी ज्यादा सरल, सहज एवं आसान है हस्त मुद्रासन । "नास्ति मुद्रासनं किंचित् सिद्विदं क्षितिमण्डले”




अर्थात् मुद्रा के समान सिद्धि देने वाला कोई कर्म पृथ्वी पर नहीं है। | आसन से दृढ़ता एवं शरीर में लचीलापन तथा मुद्रा से मन की स्थिरता प्रप्ति होती है। आसनों में बाह्य इन्द्रियों की एवं मुद्रायों प्राण तत्वों की प्रधानता रहती है। हमारे हाथ की पांचों अंगुली चित्रनुसार पांच तत्वों का प्रतिनिधित्व करती है। अगुंठा – अग्नि, तर्जनी वायु, मध्यमा - अनामिका - पृथ्वी एवं कनिष्ठा जल तत्व का घोतक है । आकाश, - | प्राणायाम से तन निरोगी एवं मन एकाग्रचित होकर साधना में उन्मुख हो जाता है। प्राणायाम एवं मुद्रा सभी उम्र के लोगों के लिये और भी आसान एवं सहज है जो पंचभूता शरीर में | पांच तत्वों (क्षिति, जल पावक गगन समीरा) का नियमन के साथ कुडलिनी शक्ति का जागरण एवं भावनात्मक जगत में उत्तरोत्तर उन्नति होने लगती है।


विधिः वज्रासन, पट्टमासन या सुखासन में बैठकर नीचे चित्रित हस्तमुद्रा रोग के अनुसार 15 से 20 मिनट तक किया जाता है। सभी प्राणायाम वायु मुद्रा में ही किया जाता है परन्तु विशेष रोग में विद्वान में रोगानुसार कोई एक मुद्रा में सभी प्राणायम केवल उदगीथ को छोड़कर करें। उद्गीथ (ओम) प्राणायाम केवल झान-ध्यान मुद्रा में ही किया जाता है ।



1. ज्ञान मुद्रा:-


विधिः अंगुठा एवं तर्जनी अंगुली के अग्र भागों को आपस में मिलाकर शेष तीनों अंगुलियों को सीधे रखना पडता है।





लाभ: ध्यान / धारणा स्मरण शक्ति के साथ बच्चे मेधावी सुसुप्त प्राण का शक्ति का जागरण, आँखों का दोष दूर करने, नेत्र ज्योति बढ़ती है। लम्बे उपवास में भूख-प्यास नहीं लगती है. अनिद्रा में ज्ञानमुद्रा एवं प्राण मुद्रा अतिलाभकारी है।




2. वायु मुद्रा :-


विधिः तर्जनी अंगुली को अंगुठा के मूल में लगाकर अंगुठे को हल्का दबाकर रखने से वायु मुद्रा बनाती है। शेष तीन अंगुलियां को सीधा रखना चाहिए।


लाभः सभी प्रकार के वायुदोष, गठिया, संधिवाद अर्थराइटिस, लकवा, कम्वात, साइटिका, घुटने का दर्द, गर्दन व रीढ़ के दर्द एवं रक्त संचारण में लाभकारी ।




3. पृथ्वी+सूर्य मुद्रा :-


विधिः अनामिका और अंगुठा के अंग्र भागों को सटाकर रखने से एवं शेष तीन अंगुलियों को सीधा रखने से पृथ्वी मुद्रा बनती है। अनामिका अंगुली को अंगुठे के मूल पर लगाकर अंगुठे से दबाएं यह सूर्य मुद्रा बनाती है।


लाभः शरीर का वजन, रक्त में कॉलेस्ट्रोल में कमी, लीवर एवं पैनक्रियाज में सुधार। कमजोर लोगों को निषेध एवं गर्मी के दिनों में ज्यादा समय तक न करे, पाचन क्रिया, जीवनी शक्ति में विकास


4. शून्य मुद्रा :-



विधिः मध्यमा अंगुली आकाश तत्व का प्रतीनिधित्व करती है इसको अंगुठा के मूल में लगाकर अंगुठा से हल्का दबाते हैं शेष अंगुलिया सीधी रहती है।


लाभ : कान बहना, दर्द, बहरापन, कम से कम 1 घंटा तक हड्डियों का मजबूती. मसूढ़ों की पकड़ मजबूत ।


5. अपान मुद्रा :-


विधिः अंगुठा, मध्यमा एवं अनामिका के अग्र भागों को स्पर्श करते हुए शेष दो अंगुलियों को सीधा रखने से यह मुद्रा बनती है।


लाभ: शरीर के विजातीय पदार्थ पसीना के साथ निष्कासन, कीडनी रोग, कब्ज, बवासीर, मधुमेह, दांतो के विकास में लाभकारी ।


6. अपान वायु मुद्रा :-


विधिः अपान मुद्रा तथा वायु मुद्रा को एक साथ मिलाइए और कनिष्ठा अंगुली सीधी रखें। चित्र के अनुसार । लाभ: हृदय रोग में दिल का दौरा पड़ते ही इसे शीघ्र करना चाहिये। पेट में गैस का निष्कासन, सिर दर्द, श्वास फूलना / दमा, हाई ब्लड प्रेसर में लाभकारी ।


7. वरूण मुद्रा :-


विधिः कनिष्ठका अंगुलि को अंगूठे के अग्र भाग में सटाकर रखें ।


लाभ: त्वचा का रूखापन नष्ट होकर त्वचा मुलायम, रौनकदार मुँहासे से छुटकारा, चेहरा चमकीला एवं सुन्दर।